पितृ पक्ष में कब क्या दान करना चाहिए, इस बारे में जानिए विस्तार से . . .
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सनातन धर्म में पूर्वजों का स्मरण केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक भावनात्मक और आध्यात्मिक कर्तव्य है। हिंदू धर्मावलंबी अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक याद करते हैं, उनके लिए पूजन, तर्पण और दान करते हैं। यह अवधि प्रायः 15 अथवा 16 दिनों की होती है। जब यह अवधि 16 दिन की होती है, तो इसे सोलह श्राद्ध, महालय पक्ष या अपर पक्ष भी कहा जाता है।
पितर पक्ष अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी, मार्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, जय श्री राम, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
भगवदगीता (अध्याय 9, श्लोक 25) स्पष्ट कहती है कि पितर पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं। देव पूजने वाले देवताओं को और परमात्मा को पूजने वाले परमात्मा को प्राप्त होते हैं। अर्थात, जिसे पाना चाहते हो, उसकी पूजा करो – और परमात्मा को पाना ही श्रेष्ठ है।
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वहीं, मार्कण्डेय पुराण में एक कथा आती है कि रूचि नामक ब्रम्हचारी 40 वर्ष तक वेदों के अनुसार साधना करता रहा। तभी उसके चार पितर, जो शास्त्रविरुद्ध आचरण के कारण पितरलोक में कष्ट भोग रहे थे, प्रकट हुए। उन्होंने रूचि से विवाह कर श्राद्ध करने का आग्रह किया।
रूचि ने कहा – वेदों में पितर पूजा और पिण्डदान को मूर्खों की साधना कहा गया है, तो मैं यह क्यों करूँ?
पितरों ने उत्तर दिया – सत्य है कि वेदों में पितर, भूत और देव पूजा को अविद्या कहा गया है, परंतु लोकव्यवस्था और वंश-धारा के कल्याण हेतु श्राद्ध भी आवश्यक है।
पितर पूजा का ऐतिहासिक संदर्भ जानिए,
पितर पूजन की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। ऋग्वेद में पितरों का आह्वान कर धन, बल और समृद्धि की प्रार्थना की गई है। पितरों को वर, अवर और मध्यम श्रेणियों में विभाजित किया गया – यह विभाजन मृत्यु के क्रम और कर्मों के आधार पर था। अग्नि को मृतात्माओं को पितरलोक तक पहुंचाने वाला दूत माना गया है।
इसमें श्राद्ध और दान की परंपरा का उल्लेख है जिसमें, विद्वानों के अनुसार, मृतात्मा को नई देह देने और पितरलोक में सुख पहुंचाने के लिए दान अत्यंत महत्वपूर्ण है।
जानिए पितरों के लिए कब और क्या दान करें?
पितर पक्ष में दान का बहुत महत्व है। विद्वानों के अनुसार, दान से पितरों को सुख, शांति और अगला जन्म पाने में सहूलियत मिलती है।
पहले 10 दिन जिन दस दान का उल्लेख है उसमें भोजन, वस्त्र, जल का घड़ा, तिल, धान, नमक, गुड़, फल, दीपक व अग्नि सामग्री एवं दक्षिणा का समावेश है। 11वें दिन एकोदिष्ट श्राद्ध होता है जो केवल हाल ही में ब्रम्हलीन होने वालों के लिए विशेष श्राद्ध माना गया है। इसके बाद के दो महीनों में हर माह एक बार मासिक श्राद्ध एवं उसके उपरांत एक वर्ष तक प्रत्येक छः माह में विशेष श्राद्ध किया जाता है। इस तरह कुल 16 श्राद्ध संस्कार पूरे होते हैं।
प्रतिपदा की तिथि पर तिल व गुड़ का दान, पितरों के लिए खीर, चावल, दाल बनाएं क्योंकि पितरों को मिष्ठान पसंद होते हैं। द्वितीया पर वस्त्र दान एवं पितरों के लिए पुड़ी, चना, दाल व हलुवा बनाएं इस दिन वस्त्र दान का महत्व होता है। तृतीया श्राद्ध पर जौ व तिल दान करें, पितरों के लिए जौ की रोटी व मूंग की दाल बनाएं इस दिन यह पितरों के लिए उर्जा का प्रतीक माना गया है। चतुर्थी पर दूध व फल का दान व पितरों के लिए खीर, फल व साबुदाना, पंचमी को भूमि का दान व पितरों के लिए मूंग की खिचड़ी व सब्जी, षष्ठी को धान या चावल का दान व पितरों के लिए कढ़ी, चावल, पापड़ बनाएं। इसी तरह सप्तमी पर तांबे के बर्तन का दान, व पितरों के लिए पुड़ी, हलवा व चना बनाएं, अष्टमी को गुड़ व तिल का दान तथा पितरों के लिए मीठा चावल व मूंग की दाल बनाएं, नवमी को दक्षिणा दान स्वरूप दें व पितरों के लिए दलिया, मूंग की दाल व सब्जी बनाएं। दशमी के दिन दीपक व तेल का दान एवं पितरों के भोजन हेतु मूंग की खिचड़ी व सब्जी, एकादशी को अनाज व सब्जियों का दान तथा पितरों के भोजन हेतु फल व साबूदाना बनाएं, द्वादशी को नमक व दाल का दान तथा, पितरों के भोजन हेतु दाल, चावल, सब्जी व मिठाई बनाएं, त्रयोदशी को कंबल व वस्त्र का दान व पितरों हेतु चावल, दाल, मूंग का हलवा बनाएं, चतुदर्शी को घी व मिठाई का दान तथा पितरों हेतु पकोड़ी, मिठाई एवं पुड़ी बनाएं। सर्वपितर मोक्ष अमावस्या पर अन्न, जल, वस्त्र, दक्षिणा का दान व पितरों के लिए चावल, मूंग दाल, पापड़, सब्जी व खीर बनाएं।
पितर पूजन का लाभ जानिए, पूर्वज प्रसन्न होकर वंश पर कृपा करते हैं। घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है। संतान को लंबी आयु और अच्छा स्वास्थ्य मिलता है। पितरों को अगले लोक की यात्रा में सहूलियत मिलती है। परिवार में आध्यात्मिक और नैतिक शक्ति बढ़ती है। संतान को आयु, बल, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि मिलती है। वंश में आध्यात्मिक और नैतिक स्थिरता आती है। मृतात्माओं को अगले लोक की यात्रा में सहूलियत मिलती है।
पितरों से जुड़ी मान्यताएं जानिए,
पितरों को वर, अवर और मध्यम तीन श्रेणियों में बांटा गया है। अग्नि को पितरों तक दान और तर्पण पहुंचाने वाला दूत माना गया है।
पितर पक्ष का दार्शनिक आधार जानिए, पितर पक्ष की मुख्य मान्यता है – आत्मा अमर है। आत्मा एक सूक्ष्म शरीर के माध्यम से पुनर्जन्म लेती है। पूर्वजों द्वारा किए गए श्राद्धकर्म आत्मा के अगले जन्म को प्रभावित कर सकते हैं। बौद्ध और जैन दर्शन भी पुनर्जन्म को मानते हैं, जबकि चार्वाक दर्शन अपवादस्वरूप इसे नहीं मानता।
पितर पक्ष केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि हमारे वंश की जड़ों से जुड़ने का अवसर है। श्राद्ध, तर्पण और दान के माध्यम से हम अपने पूर्वजों को सम्मान देते हैं, उनके आशीर्वाद से अपने वर्तमान और भविष्य को संवारते हैं। पितर पक्ष सिर्फ एक कर्मकांड नहीं, बल्कि हमारे वंश और संस्कृति से जुड़ने का माध्यम है। श्राद्ध, तर्पण और दान के जरिए हम अपने पितरों का सम्मान करते हैं और उनके आशीर्वाद से अपना भविष्य संवारते हैं। हरि ओम,
पितर पक्ष अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी, मार्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, जय श्री राम, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)

आशीष कौशल का नाम महाराष्ट्र के विदर्भ में जाना पहचाना है. पत्रकारिता के क्षेत्र में लगभग 30 वर्षों से ज्यादा समय से सक्रिय आशीष कौशल वर्तमान में समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के नागपुर ब्यूरो के रूप में कार्यरत हैं .
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