✨ पितृपक्ष का महत्व
सनातन धर्म में पितरों के स्मरण और उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए पितृपक्ष या महालय पक्ष का विशेष महत्व है। भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक कुल 16 दिन पितरों की शांति और तर्पण हेतु समर्पित रहते हैं। इन दिनों में जिस तिथि को हमारे पूर्वजों का निधन हुआ होता है, उसी तिथि पर उनका श्राद्ध करना शास्त्रसम्मत माना गया है।
अष्टमी श्राद्ध उन्हीं पितरों के लिए किया जाता है जिनका निधन अष्टमी तिथि को हुआ हो। यह श्राद्ध परिवार में सुख-शांति, समृद्धि और संतति वृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है।
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📅 अष्टमी श्राद्ध 2025 की तिथि और महत्त्व
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, पंचांग गणना के मुताबिक अष्टमी श्राद्ध 2025, 14 सितंबर (रविवार) को होगा।
- इस दिन पितरों का स्मरण, तर्पण और पिंडदान करने से आत्मा को शांति और संतानों को आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- मान्यता है कि अष्टमी श्राद्ध सर्वपितृ अमावस्या के समान फल देता है।
- विशेष रूप से अल्पायु या आकस्मिक निधन वाले पितरों के लिए यह दिन सर्वोत्तम है।
🙏 अष्टमी श्राद्ध पूजन विधि
श्राद्ध एक शास्त्रीय प्रक्रिया है जिसमें शुद्धता, संयम और श्रद्धा की आवश्यकता होती है।
- स्नान और संकल्प
- प्रातः स्नान करें, स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
- संकल्प लेते समय गोत्र और पितरों का नाम उच्चारित करें।
- देव-आवाहन
- भगवान विष्णु का पूजन करें।
- गणेश जी, यमराज और पितृ देवताओं का ध्यान करें।
- पितृ तर्पण
- दक्षिण दिशा की ओर मुख करके तर्पण करें।
- जल में तिल डालकर “पितृभ्यः स्वधा नमः” मंत्र का उच्चारण करें।
- पिंडदान
- चावल, घी और तिल से पिंड बनाकर पीपल या वट वृक्ष के नीचे अर्पित करें।
- ब्राह्मण भोजन और दान
- ब्राह्मणों को भोजन कराएँ और वस्त्र-दक्षिणा दें।
- गाय, कौए, कुत्ते और चींटियों को अन्नदान करें।
📖 अष्टमी श्राद्ध विधान
- श्राद्ध कर्म में सात्विकता का पालन अनिवार्य है।
- माँसाहार, मदिरा और नकारात्मक व्यवहार त्याज्य है।
- घर का ज्येष्ठ पुरुष या पुत्र श्राद्ध का प्रधान करता है।
- पितरों को आमंत्रित करते हुए यह मंत्र बोला जाता है –
“ॐ नमः पितृभ्यः स्वधा नमः।”
📚 अष्टमी श्राद्ध की पौराणिक कथा
- महाभारत प्रसंग
पांडवों ने युद्ध के बाद गंगातट पर अष्टमी तिथि को श्राद्ध किया। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि श्राद्ध न केवल पितरों को शांति देता है बल्कि परिवार की परंपरा को भी संरक्षित करता है। - कर्ण की कथा
कर्ण को स्वर्ग में भोजन नहीं मिला क्योंकि उन्होंने जीवन में पितृ तर्पण नहीं किया था। तब उन्हें 16 दिन के लिए पृथ्वी पर आकर पितृपक्ष में श्राद्ध करने का अवसर मिला। तभी से पितृपक्ष का महत्व और अधिक बढ़ गया।
⚠️ अष्टमी श्राद्ध की सावधानियां
- श्राद्ध दिवस पर व्रत रखें और सात्विक भोजन करें।
- क्रोध, असत्य और कटु वचन का त्याग करें।
- माँस, शराब, लहसुन-प्याज का सेवन न करें।
- दक्षिण दिशा की ओर मुख करके तर्पण करें।
- घर में उत्सव या शृंगार से बचें।
- यथासंभव कुशा, तिल और गंगाजल का प्रयोग करें।
🕉️ आध्यात्मिक महत्व
श्राद्ध केवल कर्मकांड नहीं है बल्कि यह पितरों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का माध्यम है।
- पितृ कृपा से घर में धन, धान्य और समृद्धि बढ़ती है।
- परिवार से गृहकलह और आर्थिक संकट दूर होते हैं।
- संतान की उन्नति और परिवार में शांति बनी रहती है।
अष्टमी श्राद्ध 2025 केवल एक कर्मकांड नहीं बल्कि संस्कार और संस्कृति का जीवंत प्रतीक है।
इस वर्ष 14 सितंबर 2025 को पड़ने वाले अष्टमी श्राद्ध पर पितरों का तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण भोजन कराकर पूर्वजों की आत्मा को शांति दें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
हरिओम तत्सत।

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