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एआई के दुरुपयोग से खतरनाक बने साइबर अपराधी, अब सुरक्षा तंत्र को रक्षात्मक नहीं, आक्रामक होना होगा

(अभिमनोज)

कभी भविष्य की कल्पनाओं में सिमटा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आज हमारे जीवन का हिस्सा बन चुका है। जहां एक ओर यह तकनीक स्वास्थ्य, शिक्षा, संचार और शोध में क्रांति ला रही है, वहीं दूसरी ओर साइबर अपराधियों के लिए यह एक घातक हथियार बन गई है।

हाल ही में जारी “AI 2027″ रिसर्च पेपर और अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स ने इस खतरे को और स्पष्ट किया है। इन रिपोर्ट्स के अनुसार, एआई अब सिर्फ स्मार्ट एप्लिकेशन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि हैकर्स इसे अपने अपराधों को तेज, सटीक और खतरनाक बनाने में इस्तेमाल कर रहे हैं।

कैसे बदल रहा है साइबर अपराध का चेहरा

तेज़ी (Speed) – जहां पहले किसी हैकर को खतरनाक कोड लिखने में हफ्तों लगते थे, अब एआई सेकंडों में यह कर देता है।

सटीकता (Precision) – एआई कमजोर सर्वर, डेटाबेस और व्यक्तियों की पहचान बेहद आसानी से कर लेता है।

मनोवैज्ञानिक दबाव (Psychological Manipulation) – ब्लैकमेलिंग में एआई यह तय करने में मदद करता है कि किसे, कैसे और कितनी फिरौती मांगी जाए।

Anthropic के चैटबॉट Claude का मामला

अमेरिकी एआई कंपनी Anthropic के चैटबॉट Claude का हैकर्स ने बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया।

17 संगठनों को निशाना बनाया गया।

इसमें सरकारी और निजी, दोनों तरह की संस्थाएं शामिल थीं।

Claude की मदद से हैकर्स ने कोड लिखवाए और फिरौती की रकम तय की।

यह घटनाक्रम बताता है कि एआई अब अपराधियों के लिए मशीनगन जैसा हथियार है, जबकि सुरक्षा एजेंसियां अभी भी सिर्फ ढाल लेकर खड़ी हैं।

भारत में खतरा क्यों ज्यादा है

भारत में 80 करोड़ से अधिक इंटरनेट यूजर्स हैं, जिनमें बड़ी संख्या ग्रामीण और युवा उपभोक्ताओं की है।

साइबर सुरक्षा की जानकारी का अभाव।

फ्री ऐप्स और ऑफर के लालच में फंसना।

छोटे व्यवसायों का साइबर सुरक्षा में निवेश न करना।

इन वजहों से भारत एआई-आधारित साइबर हमलों के लिए आसान निशाना बन सकता है।

रक्षात्मक नहीं, आक्रामक रणनीति की जरूरत

अभी तक भारत समेत कई देशों की साइबर सुरक्षा रणनीति रक्षात्मक (Defensive) रही है

हमला होने का इंतजार।

जांच और सबूत जुटाना।

अपराधियों को पकड़ना या ब्लॉक करना।

लेकिन इस प्रक्रिया में समय इतना लगता है कि तब तक अपराधी कहीं और हमला कर चुके होते हैं।

आक्रामक रणनीति का मतलब

एआई टूल्स की समझ अपराधियों से पहले उनकी तकनीक को पहचानना।

हमले से पहले खतरे का पता लगाना।

डार्क वेब की निगरानी और डिजिटल जाल बिछाना।

अंतरराष्ट्रीय सहयोग रीयल टाइम डेटा शेयरिंग व्यवस्था बनाना।

समाधान

डिजिटल साक्षरता आम नागरिक को मजबूत पासवर्ड, लिंक वेरिफिकेशन और डेटा सुरक्षा की शिक्षा।

साइबर इंफ्रास्ट्रक्चर पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों को आधुनिक एआई टूल्स से लैस करना।

कंपनियों की जिम्मेदारी डेटा सुरक्षा को प्राथमिकता देना।

कानूनी बदलाव एआई आधारित अपराधों पर तुरंत कार्रवाई के लिए कानून अपडेट करना।

 एआई का दुरुपयोग साइबर अपराध की रफ्तार, पैमाना और खतरनाक स्तर को कई गुना बढ़ा रहा है। अब समय है कि भारत सहित दुनिया के सभी देश साइबर सुरक्षा में आक्रामक रुख अपनाएं, क्योंकि यह लड़ाई सिर्फ सरकार की नहीं, हर डिजिटल नागरिक की है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं साइबर विधि विशेषज्ञ हैं)

(साई फीचर्स)