पितृ पक्ष में क्या न करें और तृतीय श्राद्ध के दिन पितरों का तर्पण कैसे करें, जानिए शुभ मुहूर्त, विधि, नियम और गरुड़ पुराण के अनुसार मान्यताएं।
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सनातन धर्म में पितृ पक्ष को पूर्वजों की आत्मा को तृप्त करने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर माना जाता है। यह काल भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर अश्विन अमावस्या तक चलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस समय पितर पितृलोक से धरती पर आते हैं और अपने वंशजों से तर्पण और श्राद्ध की अपेक्षा रखते हैं।
पितर पक्ष अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी, मार्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, जय श्री राम, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
📅 तृतीय श्राद्ध का शुभ मुहूर्त
तृतीय श्राद्ध उन पितरों के लिए किया जाता है जिनका निधन कृष्ण या शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ हो। इस वर्ष तृतीय श्राद्ध 20 सितंबर 2025 को है।
- उत्तम समय: दोपहर 12:30 बजे से 1:00 बजे के बीच (मध्याह्न काल)
- यदि तिथि ज्ञात न हो, तो सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या पर श्राद्ध करना उचित है।
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🪔 तर्पण और श्राद्ध की विधि
- सुबह जल्दी उठें — स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- पितृस्थान की तैयारी — गोबर से लीपकर गंगाजल से पवित्र करें।
- आवश्यक सामग्री — काले तिल, जौ, चंदन, अक्षत, गंगाजल, घी, फूल, तुलसी, शहद, पत्तल/थाली, वस्त्र, दक्षिणा।
- तर्पण — जल में काले तिल, जौ और कुश मिलाकर पितरों के नाम से अंगूठे की ओर से अर्पित करें।
- पिंडदान — चावल, तिल और घी से पिंड बनाकर अर्पित करें।
- भोजन अर्पण — प्रथम ग्रास गाय को, द्वितीय पक्षी (विशेषकर कौआ) को, तृतीय कुत्ते को और फिर चींटियों को दें।
- ब्राह्मण भोजन — कम से कम तीन ब्राह्मणों को खीर, कढ़ी, पूड़ी, सब्जी आदि का भोजन कराएं और वस्त्र-दक्षिणा देकर विदा करें।
- पूजन — भगवान विष्णु और यमराज की पूजा के बाद तर्पण करें, गीता के तृतीय अध्याय का पाठ करें।
🛑 पितृ पक्ष में वर्जित कार्य
गरुड़ पुराण और परंपरागत मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष में इन कार्यों से बचना चाहिए —
- मांसाहार — मांस, मछली, अंडा, प्याज, लहसुन, मसूर दाल।
- नए वस्त्र व निर्माण कार्य — कपड़े, भूमि, भवन, गृहप्रवेश।
- मांगलिक कार्य — विवाह, नामकरण, उत्सव आयोजन।
- शरीर पर साबुन-तेल का प्रयोग — विशेषकर तर्पण वाले दिन।
- नकारात्मक कर्म — झूठ बोलना, कलह करना, ब्याज का धंधा, शराब सेवन।
🌸 पूजा में प्रयोग होने वाली सामग्री
- गंगाजल — पवित्रता के लिए।
- जौ और काले तिल — तर्पण के लिए अनिवार्य।
- गुलाब के फूल और चंदन — पितरों को प्रिय।
- गाय का घी — दीप जलाने और अर्पण के लिए।
- तुलसी और शहद मिश्रित जल — जलांजलि में।
🕊 पितरों को तृप्त करने का महत्व
मान्यता है कि सही विधि से श्राद्ध और तर्पण करने पर पितर तृप्त होकर आशीर्वाद देते हैं। इससे —
- परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
- रोग और संकट दूर होते हैं।
- पितृ दोष समाप्त होता है।
📜 धार्मिक संदर्भ
गयाजी जैसे तीर्थस्थल पर पिंडदान और तर्पण का विशेष महत्व है। वहां फल्गु नदी में स्नान और भगवान गदाधर का पूजन पितरों की आत्मा को बैकुंठ में स्थान देता है।
⚠ निष्कर्ष और सावधानियां
तृतीय श्राद्ध केवल एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह पूर्वजों के प्रति हमारी आस्था और कृतज्ञता का प्रतीक है। पितृ पक्ष में वर्जित कार्यों से बचें और श्राद्ध-तर्पण पूरी श्रद्धा से करें, ताकि पितरों का आशीर्वाद परिवार पर बना रहे।
📢 डिस्क्लेमर:
हरि ओम,
पितर पक्ष अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी, मार्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, जय श्री राम, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)

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