(नन्द किशोर)
भोपाल (साई)। भोपाल के रवीन्द्र भवन में हंसध्वनि सभागार में हिन्दी दिवस 2025 के अंतर्गत भारतीय मातृभाषा अनुष्ठान का आयोजन हुआ। यह अवसर न केवल हिन्दी भाषा की समृद्ध परंपरा को याद करने का था बल्कि इसे भविष्य में और मजबूत बनाने का भी संकल्प लेने का था। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, संस्कृति मंत्री, साहित्यकार, विश्वविद्यालयों के कुलगुरु, और बड़ी संख्या में संस्कृति प्रेमी शामिल हुए।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का प्रेरणादायक भाषण
मातृभाषा और मां का अद्वितीय संबंध
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा – “मां और मातृभाषा से बड़ा कोई नहीं। जैसे मां के चरणों में चारधाम है, वैसे ही मातृभाषा की गोद में आनंदधाम है।” उन्होंने बताया कि हिन्दी की वर्णमाला हमारी पहली पाठशाला है। यह भाषा “अ” से लेकर “ज्ञ” तक बच्चों को अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाती है।
हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे बड़ी बोली जाने वाली भाषा
डॉ. यादव ने कहा कि हिन्दी आज दुनिया की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। अंग्रेजी और मंदारिन के बाद हिन्दी का स्थान है। यह न केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर है बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की पहचान भी बन चुकी है।
हिन्दी साहित्यकारों को मिला राष्ट्रीय सम्मान
इस अवसर पर 10 मूर्धन्य हिन्दी साहित्यकारों को राष्ट्रीय सम्मान से अलंकृत किया गया। इनमें आईटी, साहित्य, सेवा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी प्रचार-प्रसार से जुड़े विद्वान शामिल थे।
- राष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी सम्मान: प्रशांत पोळ (जबलपुर), लोकेन्द्र सिंह राजपूत (भोपाल)
- राष्ट्रीय निर्मल वर्मा सम्मान: रीता कौशल (ऑस्ट्रेलिया), डॉ. वंदना मुकेश (इंग्लैण्ड)
- राष्ट्रीय फादर कामिल बुल्के सम्मान: डॉ. इंदिरा गाजिएवा (रूस), पदमा जोसेफिन वीरसिंघे
- राष्ट्रीय गुणाकर मुले सम्मान: डॉ. राधेश्याम नापित (शहडोल), डॉ. सदानंद सप्रे (भोपाल)
- राष्ट्रीय हिन्दी सेवा सम्मान: डॉ. के.सी. अजय कुमार (केरल), डॉ. विनोद बब्बर (दिल्ली)
पीएम मोदी और अटल बिहारी वाजपेयी की हिन्दी प्रेम पर चर्चा
डॉ. यादव ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का उदाहरण देते हुए कहा कि आज वह हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर हिन्दी में संबोधन कर भारत का गौरव बढ़ाते हैं। वहीं, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविताओं ने हिन्दी साहित्य को विशेष पहचान दी।
कार्यक्रम में हुए विशेष विमोचन और लोकार्पण
कार्यक्रम में कई साहित्यिक कृतियों का विमोचन किया गया, जिनमें भारतीय भाषा आलोक (राजेश्वर त्रिवेदी), समाज की भाषा का संकल्प (विजयदत्त श्रीधर), और भोजपुरी प्रतिभाएं (धर्मेन्द्र पारे) शामिल हैं। इसके अलावा शिवगीता, दत्तात्रेयगीता, कपिलगीता जैसी कई गीता ग्रंथों का भी लोकार्पण किया गया।
विश्व हिंदी ओलंपियाड और अंतरराष्ट्रीय मंच पर हिन्दी
कार्यक्रम में बताया गया कि विश्व हिंदी ओलंपियाड 50 देशों में आयोजित हो रहा है जिसमें करीब 5 लाख प्रतिभागी हिस्सा लेंगे। यह आयोजन हिन्दी की वैश्विक स्वीकार्यता को दर्शाता है। समापन कार्यक्रम कोलंबो (श्रीलंका) में होगा।
मातृभाषा के संवर्धन के लिए सरकार की पहल
मध्यप्रदेश सरकार ने हाल ही में मेडिकल की पढ़ाई हिन्दी में शुरू की है। यह कदम मातृभाषा में उच्च शिक्षा को प्रोत्साहन देने की दिशा में ऐतिहासिक माना जा रहा है।
साहित्यकारों और समाज का योगदान
इस कार्यक्रम में साहित्यकारों ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि हिन्दी केवल भाषा नहीं बल्कि संस्कृति, परंपरा और भावनाओं की अभिव्यक्ति है। समाज को इसे संजोने और बढ़ावा देने के लिए निरंतर प्रयास करना होगा।
हिन्दी भाषा के भविष्य को लेकर दृष्टिकोण
कार्यक्रम में यह संदेश भी दिया गया कि हिन्दी का भविष्य उज्ज्वल है। डिजिटल युग में हिन्दी कंटेंट की मांग तेजी से बढ़ रही है। इंटरनेट और सोशल मीडिया ने हिन्दी को और सशक्त बनाया है।
Conclusion (निष्कर्ष)
हिन्दी दिवस 2025 का यह भव्य आयोजन न केवल मातृभाषा के महत्व को रेखांकित करता है बल्कि आने वाली पीढ़ियों को इसकी समृद्ध परंपरा से जोड़ने का भी अवसर है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के भाषण से स्पष्ट संदेश गया कि हिन्दी हमारी आत्मा, हमारी पहचान और हमारी संस्कृति की रीढ़ है। साहित्यकारों को सम्मानित करना और वैश्विक स्तर पर हिन्दी की बढ़ती पहचान इस बात का प्रमाण है कि हिन्दी भाषा का भविष्य मजबूत है।

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