गीता के सप्तम अध्याय का पाठ: पितृ दोष और पितृ ऋण से मुक्ति का सबसे सरल उपाय

भगवद्गीता का सातवाँ अध्याय भक्तियोग पर केंद्रित है, जो आत्मा को भक्ति और ज्ञान से जोड़ता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसका पाठ करने से पितृ ऋण से मुक्ति मिल सकती है। यही कारण है कि पितृ पक्ष में गीता पाठ का विशेष महत्व बताया गया है।

पितृ दोष और पितृ ऋण का महत्व

वैदिक ज्योतिष के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति तीन ऋणों के साथ जन्म लेता है – देव ऋण, गुरु ऋण और पितृ ऋण। देव ऋण देवताओं की पूजा से, गुरु ऋण साधना और मार्गदर्शन का पालन करने से, जबकि पितृ ऋण श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण से पूरा होता है।

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किन्तु कई बार परिस्थितिवश लोग विधिपूर्वक श्राद्ध नहीं कर पाते। ऐसे में गीता का सप्तम अध्याय, जिसे ज्ञान विज्ञान योग कहा जाता है, पितृ शांति और पितृ दोष निवारण का श्रेष्ठ उपाय माना गया है।

गीता सप्तम अध्याय क्यों है विशेष?

ज्ञान विज्ञान योग का संदेश

इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि –

  • परम सत्य को जानने से मनुष्य को मोक्ष मिलता है।
  • भक्ति और ज्ञान का संतुलन जीवन को सफल बनाता है।
  • भगवान ही समस्त सृष्टि के मूल कारण और पालनकर्ता हैं।

पितृ पक्ष में पाठ का महत्व

श्राद्ध के दौरान गीता सप्तम अध्याय का पाठ करने से –

  • पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है।
  • पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है।
  • घर-परिवार पर पितरों का आशीर्वाद बना रहता है।

गीता सप्तम अध्याय पाठ की विधि

  1. श्राद्ध दिवस पर संकल्प लें – जल और पुष्प लेकर संकल्प करें कि पाठ पितरों की मोक्ष प्राप्ति हेतु कर रहे हैं।
  2. शुद्ध आसन पर बैठें – पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके आसन लगाएँ।
  3. आरंभ करें पाठ – सातवें अध्याय का क्रमवार पाठ करें, अगर संभव हो तो परिवार के सदस्य भी शामिल हों।
  4. पाठ का समय – प्रातःकाल या संध्या समय सबसे श्रेष्ठ माना गया है।
  5. पूर्ण होने पर अर्पण – पाठ पूर्ण होने के बाद पितरों को जल अर्पित करें और शांति मंत्र का उच्चारण करें।

ज्योतिषीय दृष्टि से लाभ

  • जन्मकुंडली में पितृ दोष के कारण जीवन में बार-बार असफलता, पारिवारिक कलह और आर्थिक संकट आते हैं।
  • गीता सप्तम अध्याय का पाठ इन नकारात्मक प्रभावों को कम करता है।
  • ग्रह दोष, विशेषकर सूर्य और राहु से संबंधित बाधाओं में कमी आती है।
  • पितृ पक्ष में इसका विशेष महत्व है क्योंकि यह काल पितरों को समर्पित होता है।

कौन लोग अवश्य करें गीता पाठ?

  • विदेशों में रहने वाले लोग, जो विधिपूर्वक श्राद्ध नहीं कर पाते।
  • ऐसे परिवार जहाँ पितरों का श्राद्ध-विधान संभव नहीं हो।
  • जिनकी कुंडली में पितृ दोष स्पष्ट रूप से विद्यमान हो।
  • जो लोग अपने पितरों की शांति और आशीर्वाद चाहते हैं।

गीता सप्तम अध्याय से जुड़ी शिक्षाएँ

  • संसार में जो भी है, वह ईश्वर से उत्पन्न है।
  • माया और अज्ञान मनुष्य को सत्य से दूर रखते हैं।
  • भक्ति, ज्ञान और कर्म का संतुलन ही मोक्ष का मार्ग है।
  • ज्ञानी भक्त भगवान को सर्वाधिक प्रिय होते हैं।

पितृ पक्ष और गीता पाठ का संबंध

पितृ पक्ष को पूर्वजों की आत्मा के उद्धार का समय माना जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस समय किया गया तर्पण, दान और पाठ सीधे पितरों तक पहुँचता है। गीता का सप्तम अध्याय विशेष रूप से मोक्ष, ज्ञान और आत्मशांति से जुड़ा होने के कारण पितरों की मुक्ति में सहायक है।

आधुनिक जीवन और गीता का संदेश

आज के समय में लोग व्यस्त जीवन के कारण श्राद्ध-विधान पूरे नहीं कर पाते। ऐसे में गीता का पाठ करना एक सरल उपाय है, जो हर कोई कर सकता है।

  • यह मानसिक शांति देता है।
  • पारिवारिक संबंधों में सामंजस्य लाता है।
  • नकारात्मक ऊर्जा दूर करता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

पितृ पक्ष के अवसर पर गीता सप्तम अध्याय का पाठ पितृ दोष और पितृ ऋण से मुक्ति का सबसे सरल और प्रभावी उपाय माना गया है। यह अध्याय न केवल पितरों की आत्मा को शांति देता है बल्कि परिवार में सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति भी लाता है। यदि कोई विधिपूर्वक श्राद्ध नहीं कर पाता, तो भी केवल इस अध्याय का पाठ करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।
👉 याद रखें – गीता केवल धर्मग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन का मार्गदर्शक है।

(साई फीचर्स)