पंचमी तिथि पर किसका किया जाता है श्राद्ध एवं किसका किया जाएगा षष्ठी तिथि का श्राद्ध
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पितृ पक्ष 2025 में पंचमी और षष्ठी तिथि का श्राद्ध 12 सितम्बर को होगा। जानिए पंचमी श्राद्ध और षष्ठी श्राद्ध का महत्व, विधि, सावधानियां और धार्मिक मान्यताएं।
📖 मुख्य आलेख
🌞 पितृ पक्ष का महत्व
सनातन धर्म में पितृ पक्ष को पूर्वजों का स्मरण काल कहा जाता है। मान्यता है कि इस समय पितर यमलोक से धरती पर आते हैं और अपने वंशजों के तर्पण व श्राद्ध को ग्रहण करते हैं। उनके तृप्त होने पर परिवार को समृद्धि, शांति और आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पितर पक्ष अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी, मार्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, जय श्री राम, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
📅 पंचमी और षष्ठी श्राद्ध 2025 की तिथि
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, वर्ष 2025 में पंचमी और षष्ठी तिथि का श्राद्ध 12 सितम्बर को किया जाएगा।
- पंचमी श्राद्ध → उन दिवंगत आत्माओं के लिए जिनकी मृत्यु पंचमी तिथि को अथवा अविवाहित रहते हुए हुई हो।
- षष्ठी श्राद्ध → उन आत्माओं के लिए जिनकी मृत्यु षष्ठी तिथि को हुई हो या जो संतान सुख से वंचित रहे हों।
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🙏 पंचमी श्राद्ध: महत्व और परंपरा
पंचमी श्राद्ध को कुंवारा पंचमी भी कहा जाता है।
- यह श्राद्ध अविवाहित मृतक आत्माओं के लिए किया जाता है।
- जिनकी मृत्यु पितृ पक्ष की पंचमी तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध भी इसी दिन होता है।
- इस तिथि पर श्राद्ध करने से आत्मा को शांति मिलती है और उनका परलोक का मार्ग प्रशस्त होता है।
⚰️ षष्ठी श्राद्ध: महत्व और परंपरा
षष्ठी श्राद्ध को छठ श्राद्ध भी कहा जाता है।
- इस दिन उन लोगों का श्राद्ध होता है जिनकी मृत्यु षष्ठी तिथि या अमावस्या को हुई हो।
- इसके अतिरिक्त, उन माता-पिता या पूर्वजों के लिए भी यह श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु संतान की आकांक्षा में हुई हो।
- षष्ठी श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होकर वंश की रक्षा करते हैं।
🕉️ श्राद्ध विधि
श्राद्ध करते समय शुद्धता और सात्विकता का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
- प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- घर के पूजा स्थल को गंगाजल व गोबर से पवित्र करें।
- पूर्वजों के लिए सात्विक भोजन बनाएं।
- योग्य ब्राह्मणों को आमंत्रित करें।
- जल में काला तिल डालकर तर्पण करें।
- ब्राह्मणों को भोजन कराएं और वस्त्र व दक्षिणा दें।
- कौआ, गाय, कुत्ते और चींटी को भोजन अर्पित करें।
⚠️ श्राद्ध के दौरान सावधानियां
- श्राद्ध दिवस पर लहसुन, प्याज, मांस और मदिरा का सेवन वर्जित है।
- ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- घर में विवाद और कलह से बचें।
- बाल और नाखून काटना मना है।
- पितृ पक्ष के दौरान विवाह, मुंडन और गृहप्रवेश जैसे मांगलिक कार्य न करें।
🌊 गंगा किनारे श्राद्ध का महत्व
शास्त्रों में गंगा नदी के तट पर श्राद्ध करने को सबसे श्रेष्ठ माना गया है। मान्यता है कि गंगा तट पर किया गया श्राद्ध पितरों को तुरंत तृप्त करता है और साधक को अक्षय पुण्य प्रदान करता है। यदि गंगा जाना संभव न हो तो घर पर विधिवत श्राद्ध किया जा सकता है।
✨ पितृ आशीर्वाद और आध्यात्मिक लाभ
श्राद्ध करने से केवल पितरों की आत्मा को ही शांति नहीं मिलती बल्कि—
- घर में सुख-शांति बनी रहती है।
- संतान सुख और धन वृद्धि होती है।
- रोग-व्याधि से मुक्ति मिलती है।
- परिवार में एकजुटता और सौहार्द बढ़ता है।
📢 धार्मिक मान्यताएं और आस्था
पितृ पक्ष में सूर्य, विष्णु, शिव, राम और श्रीकृष्ण की पूजा का भी विशेष महत्व है। भक्त प्रायः कहते हैं—
- जय सूर्य देवा
- जय विष्णु देवा
- ओम नमः शिवाय
- जय श्री कृष्ण
- जय श्री राम
- ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः
🧾 सावधानी और अस्वीकरण
यहां बताए गए उपाय, विधियां और मान्यताएं धार्मिक ग्रंथों, पुराणों और ज्योतिषाचार्यों की मान्यताओं पर आधारित हैं। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया इसका कोई दावा नहीं करती। किसी भी मान्यता को अपनाने से पूर्व योग्य आचार्य अथवा पंडित से परामर्श अवश्य लें।
वर्ष 2025 में पंचमी और षष्ठी श्राद्ध 12 सितम्बर को मनाए जाएंगे। यह दिन पूर्वजों को याद करने, उनका आशीर्वाद प्राप्त करने और परिवार में शांति स्थापित करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। पंचमी श्राद्ध अविवाहित आत्माओं की शांति हेतु और षष्ठी श्राद्ध संतानहीन या षष्ठी तिथि पर दिवंगत पितरों के लिए किया जाता है। विधिपूर्वक किए गए श्राद्ध से पूर्वज प्रसन्न होकर वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। हरि ओम,
पितर पक्ष अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी, मार्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, जय श्री राम, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)

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