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अगर आप पितर पक्ष में श्रृद्धापूर्वक करेंगे पितरों का स्मरण तो प्रसन्न होकर आपके पूर्वज, ये तिथियां हैं खास . . .

षष्ठी श्राद्ध या छठा श्राद्ध इस बार 12 सितंबर को होगा। षष्ठी तिथि के दिन किसी की मृत्यु हो जाती है, उन पितरों का श्राद्ध षष्ठी के दिन किया जाता है। इस बार सप्तमी श्राद्ध 13 सितंबर को होगा। सप्तमी तिथि के दिन जिनकी मृत्यु हो जाती है, उनका श्राद्ध सप्तमी के दिन ही किया जाता है। अष्टमी श्राद्ध, इस बार आठवां श्राद्ध 14 सितंबर को होगा। जिन पितरों की मृत्यु किसी भी महीने की अष्टमी तिथि के दिन हो जाती है, उनका श्राद्ध जो है वो अष्टमी तिथि के दिन किया जाता है। इस बार नवमी श्राद्ध 15 सितंबर को होगा। नवमी श्राद्ध खास महिलाओं के लिए होता है। यदि किसी महिला की मृत्यु तिथि याद ना हो तो नवमी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए। इस बार दशमी श्राद्ध 16 सितंबर को होगा। अगर किसी पितर की मृत्यु किसी भी महीने की दशमी तिथि को हुई हो तो उनका श्राद्ध पक्ष की दशमी तिथि के दिन किया जाता है।

इस साल 2025 में पितर पक्ष का आरंभ कब से! 6 या 7 सितंबर से . . .
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पितर पक्ष, हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें पूर्वजों का स्मरण और उनका श्राद्ध किया जाता है। यह पर्व आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में मनाया जाता है, जो आमतौर पर सितंबर से अक्टूबर के महीनों में पड़ता है। पितर पक्ष का महत्व यह है कि यह हमारे पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। हम आज आपको पितर पक्ष की तिथियों के बारे में भी बताने जा रहे हैं।
पितर पक्ष अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी, मार्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, जय श्री राम, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
पितर पक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहते हैं। यह अवधि पूर्वजों को समर्पित है। इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि पितर पक्ष में हमारे पूर्वज पृथ्वी पर आते हैं और अपने परिवार को आशीर्वाद देते हैं। यह समय उनकी आत्मा को मुक्ति दिलाने और उनके प्रति सम्मान दिखाने का होता है।
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इस तरह की मान्यता है कि पितर पक्ष का धार्मिक महत्व अत्यधिक है। हिन्दू मान्यता के अनुसार, हमारे पूर्वजों की आत्माएं इस पर्व के दौरान पृथ्वी पर आती हैं और अपने वंशजों द्वारा किए गए श्राद्ध से तृप्त होती हैं। श्राद्ध करने से पूर्वजों की आत्माओं को शांति मिलती है और उन्हें मुक्ति प्राप्त होती है। इसके अलावा, पितर पक्ष में श्राद्ध करने से वंशजों के जीवन में सुख समृद्धि आती है और उन्हें अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।
पितर पक्ष के दौरान, हिन्दू लोग कई धार्मिक कार्य करते हैं, जिनमें शामिल बहुत सारी बातें शामिल हैं।
इसमें श्राद्ध सबसे महत्वपूर्ण कार्य है, जिसमें पूर्वजों की आत्माओं का तर्पण किया जाता है। श्राद्ध में पंडित द्वारा मंत्रोच्चारण किया जाता है और पूर्वजों के नाम का हवन किया जाता है। श्राद्ध में पितरों को भोजन, जल और दक्षिणा अर्पित की जाती है। तर्पण में जल का प्रयोग किया जाता है, जिससे पूर्वजों की आत्माओं को तृप्त किया जाता है। तर्पण करने के लिए जल में कुछ सामग्री मिलाई जाती है, जैसे तिल, कुश, दूध आदि।
साथ ही पितर पूजा में पूर्वजों की प्रतिमाओं या चित्रों की पूजा की जाती है। पूजा में पुष्प, अक्षत, गंध आदि अर्पित किए जाते हैं। पितर पक्ष के दौरान पंडित की सेवा करना भी महत्वपूर्ण माना जाता है। पंडित को दक्षिणा दी जाती है और उनका आदर किया जाता है। पितर पक्ष में दान करना भी पुण्य का कार्य माना जाता है। अन्न, वस्त्र, धन आदि का दान किया जा सकता है।
पितर पक्ष के दौरान जिन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए, उनमें प्रमुख हैं। पितर पक्ष के दौरान शोक नहीं मनाना चाहिए। इस समय मांसाहारी भोजन नहीं करना चाहिए। पूर्वजों के नाम का हवन करना चाहिए। पंडित की सेवा करना चाहिए। दान करना चाहिए। पितर पक्ष के दौरान अपने पूर्वजों के बारे में सोचना चाहिए और उनके प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए।
पितर पक्ष का सामाजिक महत्व भी अत्यधिक है। यह पर्व परिवार के सदस्यों को एक साथ लाता है और उन्हें अपने पूर्वजों के बारे में बात करने का अवसर प्रदान करता है। पितर पक्ष के दौरान परिवार के सदस्य एक दूसरे के साथ समय बिताते हैं और अपने पूर्वजों के संस्कारों को याद करते हैं।
पितर पक्ष हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें पूर्वजों का स्मरण और श्राद्ध किया जाता है। यह पर्व हमारे पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। पितर पक्ष में किए जाने वाले धार्मिक कार्यों से पूर्वजों की आत्माओं को शांति मिलती है और उन्हें मुक्ति प्राप्त होती है। इसके अलावा, पितर पक्ष में श्राद्ध करने से वंशजों के जीवन में सुख समृद्धि आती है और उन्हें अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। पितर पक्ष का सामाजिक महत्व भी अत्यधिक है, क्योंकि यह पर्व परिवार के सदस्यों को एक साथ लाता है और उन्हें अपने पूर्वजों के बारे में बात करने का अवसर प्रदान करता है।
इस साल पितर पक्ष की शुरुआत कब होगी, इसे लेकर लोगों के मन में थोड़ी कन्फूयजन है, तो आइए जानते हैं कि पितर पक्ष 6 या 7 सितंबर कब से शुरू हो रहा है?
पितर पक्ष 2025 कब 6 या 7 सितंबर?
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल भाद्रपद महीने की पूर्णिमा तिथि 7 सितंबर को देर रात 1 बजकर 41 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, इसका समापन 7 सितंबर को ही रात 11 बजकर 38 मिनट पर होगा। पंचांग को देखते हुए इस साल पितर पक्ष की शुरुआत 7 सितंबर 2025 से होगी। साथ ही इसकी समाप्ति 21 सितंबर 2025 को होगी।
इस बर पूर्णिमा श्राद्ध 7 सितंबर को होगा। इस दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु किसी भी महीने की पूर्णिमा तिथि को हुई हो।
जानिए, प्रतिपदा या पहला श्राद्ध के बारे में, इस बार प्रतिपदा श्राद्ध 8 सितंबर को होगा। प्रतिपदा श्राद्ध में उन पितरों का तर्पण, पिंडदान, दान, श्राद्ध आदि होता है, जिनका किसी भी माह की प्रतिपदा तिथि को निधन हुआ होता है।
द्वितीय श्राद्ध कब होगा यह जानिए, आश्विन मास का द्वितीय श्राद्ध 9 सितंबर को होगा। जिन पितरों की मृत्यु किसी भी महीने के दूसरे दिन (द्वितीया) हुई हो उनका श्राद्ध पितरपक्ष की द्वितीया तिथि पर किया जाता है।
तृतीया श्राद्ध इस बार 10 सितंबर को है। जिनकी मृत्यु तृतीया तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध तृतीया को किया जाता है।
चौथा श्राद्ध भी इस बार 10 सितंबर को ही होगा। अगर किसी के पिताजी की मृत्यु चतुर्थी को हुई हो तो उनका श्राद्ध भी उसी तिथि को किया जाता है।
पांचवां श्राद्ध या महाभरणी श्राद्ध इस बार 11 सितंबर को होगा। इस दिन अविवाहित पितरों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु पंचमी तिथि पर हुई हो।
षष्ठी श्राद्ध या छठा श्राद्ध इस बार 12 सितंबर को होगा। षष्ठी तिथि के दिन किसी की मृत्यु हो जाती है, उन पितरों का श्राद्ध षष्ठी के दिन किया जाता है।
इस बार सप्तमी श्राद्ध 13 सितंबर को होगा। सप्तमी तिथि के दिन जिनकी मृत्यु हो जाती है, उनका श्राद्ध सप्तमी के दिन ही किया जाता है।
अष्टमी श्राद्ध, इस बार आठवां श्राद्ध 14 सितंबर को होगा। जिन पितरों की मृत्यु किसी भी महीने की अष्टमी तिथि के दिन हो जाती है, उनका श्राद्ध जो है वो अष्टमी तिथि के दिन किया जाता है।
इस बार नवमी श्राद्ध 15 सितंबर को होगा। नवमी श्राद्ध खास महिलाओं के लिए होता है। यदि किसी महिला की मृत्यु तिथि याद ना हो तो नवमी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए।
इस बार दशमी श्राद्ध 16 सितंबर को होगा। अगर किसी पितर की मृत्यु किसी भी महीने की दशमी तिथि को हुई हो तो उनका श्राद्ध पक्ष की दशमी तिथि के दिन किया जाता है।
इस बार एकादशी श्राद्ध 17 सितंबर को होगा। इस दिन उन लोगों श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु किसी भी महीने की एकादशी के दिन होती है।
इस बार द्वादशी श्राद्ध 18 सितंबर को होगा। इस दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जो संन्यासी होते हैं। इसलिए, इसे संन्यासी श्राद्ध भी कहा जाता है।
त्रयोदशी श्राद्ध या मघा श्राद्ध, इस बार 19 सितंबर को होगा। पितर पक्ष की त्रयोदशी के दिन बच्चे का श्राद्ध किया जाता है। अगर किसी के घर में बच्चे की मृत्यु हो गई हो तो उसका श्राद्ध त्रयोदशी के दिन किया जाता है।
इस बार चतुर्दशी श्राद्ध 20 सितंबर को होगा। इस दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी अकाल मृत्यु हो गई हो।
सर्वपितर अमावस्या या आखिरी श्राद्ध, ये इस बार 21 सितंबर को है। इस दिन ज्ञात-अज्ञात सभी पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है। यह पितरपक्ष का अंतिम दिन होता है जब सभी पितरों की पूजा की जाती है।
जानिए, पितर पक्ष की कौन सी 3 तिथियां हैं खास,
पितर पक्ष की सभी तिथियों का अपना महत्व है, क्योंकि हर तिथि पर किसी न किसी के पितर की मृत्यु हुई होती है और वे उनके लिए श्राद्ध और तर्पण करते हैं। लेकिन, इस दौरान भरणी श्राद्ध, नवमी श्राद्ध और सर्व पितर अमावस्या की तिथियां विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।
पहला है भरणी नक्षत्र,
हिंदू पंचांग के मुताबिक, भरणी या पंचमी श्राद्ध 11 सितंबर, गुरुवार के दिन किया जाएगा। भरणी श्राद्ध को महाभरणी श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।
भरणी श्राद्ध किसी परिजन की मृत्यु के एक साल बाद करना जरूरी होता है। अविवाहित लोगों का श्राद्ध पंचमी तिथि पर किया जाता है, और यदि उस दिन भरणी नक्षत्र हो तो श्राद्ध का महत्व और भी बढ़ जाता है। इसके अलावा, जो लोग तीर्थ यात्रा नहीं कर पाते हैं, उनके लिए गया, पुष्कर आदि में भरणी श्राद्ध करना आवश्यक होता है।
नवमी श्राद्ध भी रहेगा खास,
नवमी श्राद्ध को मातृ श्राद्ध और मातृ नवमी के नाम से जाना जाता है। नवमी तिथि पर माता पितरों का श्राद्ध करने का विशेष महत्व है, जिसमें मां, दादी, नानी आदि के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध किया जाता है।
सर्व पितर अमावस्या श्राद्ध के बारे में जानिए,
पितर पक्ष की सबसे खास और आखिरी तिथि है सर्व पितर अमावस्या श्राद्ध। सर्व पितर अमावस्या पर उन पितरों के लिए श्राद्ध किया जाता है, जिनकी तिथि का पता नहीं है।
जानिए, पितर पक्ष का महत्व
पितर पक्ष में श्राद्ध करने से पितरों को मोक्ष मिलता है और वे खुश होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। इस दौरान किए गए दान-पुण्य और तर्पण से परिवार में सुख-समृद्धि आती है और सभी तरह के कष्ट दूर होते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दौरान पितरों से जुड़े अनुष्ठान करने से कुंडली से पितर दोष समाप्त होता है।
श्राद्ध के नियम जानिए,
पितर पक्ष के दौरान रोज सुबह स्नान करने के बाद दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जल में काला तिल मिलाकर तर्पण करना चाहिए। श्राद्ध के दिन किसी ब्राह्मण को घर पर बुलाकर भोजन कराना शुभ माना जाता है। भोजन में खीर, पूड़ी, और उनकी पसंद की अन्य चीजें शामिल करनी चाहिए। श्राद्ध के बाद जरूरतमंदों को क्षमतानुसार दान देना चाहिए। पितर पक्ष के 15 दिनों तक घर में सात्विक भोजन ही बनाना चाहिए। लहसुन, प्याज और मांसाहार का सेवन पूरी तरह से वर्जित माना गया है। इस दौरान घर और मन दोनों को साफ और पवित्र रखना चाहिए। हरि ओम,
पितर पक्ष अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी, मार्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, जय श्री राम, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
यहां बताए गए उपाय, लाभ, सलाह और कथन आदि सिर्फ मान्यता और जानकारियों पर आधारित हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि किसी भी मान्यता या जानकारी की समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के द्वारा पुष्टि नहीं की जाती है। यहां दी गई जानकारी में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, मान्यताओं, धर्मग्रंथों, दंत कथाओं, किंव दंतियों आदि से संग्रहित की गई हैं। आपसे अनुरोध है कि इस वीडियो या आलेख को अंतिम सत्य अथवा दावा ना मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया पूरी तरह से अंधविश्वास के खिलाफ है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
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(साई फीचर्स)