मृत्यु एक ऐसा सत्य है जिसे कोई टाल नहीं सकता। हर प्राणी जो जन्म लेता है, उसे एक दिन शरीर त्यागना ही पड़ता है। लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि “आखिर आत्मा मृत्यु के बाद कहां जाती है?” यह सवाल प्राचीन काल से लेकर आज तक मानव को सोचने पर मजबूर करता रहा है।
सनातन धर्म के पवित्र ग्रंथ गरुड़ पुराण में आत्मा के रहस्य, मृत्यु के बाद की यात्रा और पुनर्जन्म के नियमों का विस्तार से उल्लेख मिलता है। आइए जानते हैं मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति के बारे में विस्तार से—
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आत्मा का शाश्वत सत्य
भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं –
“नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः।”
अर्थात् आत्मा को कोई शस्त्र काट नहीं सकता और न ही अग्नि उसे जला सकती है। आत्मा अमर और शाश्वत है, केवल शरीर नश्वर है।
मनुष्य का शरीर मिट्टी से बना है और यह एक दिन पंचतत्व में विलीन हो जाता है। लेकिन आत्मा ऊर्जा के रूप में बनी रहती है और अपने कर्मों के आधार पर आगे की यात्रा करती है।
गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद आत्मा का सफर
1. यमलोक की यात्रा
गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा को यमदूत अपने साथ लेकर जाते हैं। यमलोक तक पहुंचने के लिए आत्मा को लगभग 86,000 योजन की दूरी तय करनी होती है।
2. कर्मों का लेखा-जोखा
आत्मा को यमराज के दरबार में प्रस्तुत किया जाता है, जहाँ उसके जीवन के अच्छे-बुरे कर्मों का हिसाब होता है।
- अच्छे कर्मों वाली आत्मा को स्वर्ग की ओर मार्गदर्शन मिलता है।
- बुरे कर्मों वाली आत्मा को नर्क का कष्ट झेलना पड़ता है।
3. पितृ पक्ष में आत्मा की भूमिका
पितृ पक्ष का महत्व इसी कारण है। माना जाता है कि इस समय पितरों की आत्माएँ अपने वंशजों से आशीर्वाद देने आती हैं। यदि इस काल में श्राद्ध, तर्पण और दान किया जाए तो आत्मा को शांति मिलती है।
4. पुनर्जन्म की अवधारणा
गरुड़ पुराण और गीता दोनों में पुनर्जन्म की पुष्टि की गई है। आत्मा पुराने शरीर को त्यागकर नए शरीर को धारण करती है, ठीक वैसे ही जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र उतारकर नए वस्त्र पहनता है।
मृत्यु के बाद आत्मा के अनुभव
- सज्जन और पुण्यात्मा की आत्मा सहजता से शरीर त्याग देती है।
- पापी और दुराचारी को मृत्यु के समय अत्यधिक पीड़ा होती है।
- आत्मा अपने कर्मों के अनुसार विभिन्न लोकों की यात्रा करती है।
विज्ञान की दृष्टि से आत्मा
आधुनिक विज्ञान अभी तक आत्मा के अस्तित्व को प्रमाणित नहीं कर पाया है। विज्ञान के अनुसार मृत्यु के बाद केवल शरीर की क्रियाएँ समाप्त होती हैं। लेकिन यह भी एक रहस्य है कि चेतना (Consciousness) आखिर कहाँ जाती है।
धर्म और अध्यात्म की दृष्टि
ऋषि-मुनियों ने अपने तप और योगबल से आत्मा के रहस्यों को जाना और उन्हें धर्मशास्त्रों में लिखा। यही कारण है कि आत्मा का वास्तविक ज्ञान केवल अध्यात्म से ही संभव है।
मृत्यु का भय और आत्मा का सत्य
मनुष्य को सबसे अधिक भय मृत्यु का होता है। लेकिन जब वह यह समझ लेता है कि आत्मा अमर है और केवल शरीर बदलता है, तब उसका भय समाप्त हो जाता है।
पितृ पक्ष और आत्मा की शांति
पितृ पक्ष के दिनों में अपने पितरों का स्मरण करना, श्राद्ध करना और दान-पुण्य करना आत्मा की शांति का मार्ग है। यही कारण है कि इस काल को विशेष महत्व दिया गया है।
परकाया प्रवेश का उदाहरण
परमहंस और योगियों ने परकाया प्रवेश (दूसरे शरीर में प्रवेश) का भी प्रमाण दिया है। आदिशंकराचार्य का परकाया प्रवेश सबसे प्रसिद्ध उदाहरण है। यह आत्मा की अद्भुत शक्ति का प्रतीक है।
निष्कर्ष
मृत्यु जीवन का अंत नहीं, बल्कि आत्मा की यात्रा का एक पड़ाव है।
- आत्मा अमर है।
- शरीर नश्वर है।
- कर्म ही आत्मा की दिशा तय करते हैं।
- गरुड़ पुराण और गीता मृत्यु के बाद आत्मा के रहस्य को स्पष्ट करते हैं।
इसलिए जीवन में अच्छे कर्म करना ही सबसे बड़ा धर्म है, ताकि मृत्यु के बाद आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति हो।
(साई फीचर्स)

लगभग 20 वर्षों से पत्रकारिता क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं। दैनिक हिन्द गजट के संपादक हैं, एवं समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के लिए लेखन का कार्य करते हैं . . .
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